संवाद फोरम


विषय :सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए नए कानून की पैरवी की।
               फॉरवर्ड इंडिया फोरम के सदस्य क्या सोचते है ?

‍पद्मावती: परदे से हटकर कुछ जमीनी सवाल

MMNN:20 November 2017
संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ के रिलीज होने के पहले ही मारने- काटने की धमकियां, इतिहास से छेड़छाड़ न करने की चेतावनियां, भारत बंद करने की बात और आग लगा देने के दावे पूरे मामले को सही परिप्रेक्ष्य में देखने के बजाए देश के असली मुददों से ध्यान हटाने की सुनियोजित कोशिश ज्यादा लगते हैं। तमाम धमकियों के बीच इंतजार इस बात का था कि कोई व्यक्ति या संस्था इस फिल्म के कलाकार या डायरेक्टर का सिर आदि काट कर लाने पर मुंह मांगा इनाम देने का ऐलान क्यों नहीं कर रहा है तो गुरूवार को वह कमी भी पूरी हो गई। यूपी में करणी सेना के अध्यक्ष लोकेंद्र नाथ ने कहा, 'हमें उकसाना जारी रखा गया तो हम दीपिका की नाक काट देंगे। अखिल भारतीय क्षत्रिय युवा महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर अभिषेक सिंह सोम इससे भी एक कदम आगे निकले। उन्होने ऐलान कर डाला कि फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली और अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की गर्दन काटने वाले को पांच करोड़ का इनाम देंगे। सोम ने यहां तक कहा ‍िक संजय लीला भंसाली और दीपिका जल्द से जल्द देश छोड़ दें, उन्हें कोई नहीं बचा पाएगा। गौरतलब है कि फिल्म में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण पद्मावती का किरदार निभा रही हैं। इन धमकियों से बेखौफ दीपिका ने कहा कि फिल्म रिलीज होने को कोई ताकत नहीं रोक सकती। इस पर भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दीपिका को अनपढ़ बता दिया। उधर केन्द्रीय मंत्री उमा भारती ने कई ट्वीट करते हुए पूरे विवाद के लिए फिल्म के निर्देशक और पटकथा लेखक को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने लिखा-'पद्मावती फिल्म के निर्देशक तथा उनके सहयोगी के रूप में उनके स्क्रिप्ट राइटर ही कथानक के लिए जिम्मेदार हैं। उन्हें लोगों की भावनाओं और ऐतिहासिक तथ्यों का ध्यान रखना था।' यहां सारा झगड़ा ही ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर है। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला किया था। लेकिन पद्मावती प्रकरण एक काव्य आख्या़न पर ज्यादा आधारित है। संजय लीला भंसाली उपलब्ध प्रमाणों को भी अपने ढंग से पेश किया है। वे इस तरह के विवादित विषयों पर न केवल फिल्म बनाते हैं बल्कि उसे पर्दे पर लाने से पहले पंगेबाजी का माहौल भी बनवाते हैं। ‘बाजीराव मस्तानी’ के वक्त ऐसा ही हुआ था। फिल्म में महान मराठा वीर बाजीराव के चरित्र-चित्रण को कई सवाल उठे थे और फिल्म के विरोध की धम कियां दी गई थीं। बाद में फिल्म रिलीज हुई और कई विरोध करने वाले भी बाजीराव के फिल्मी डांस पर नाचने लगे। अजेय योद्धा बाजीराव ने कभी भरे दरबार में नृत्य किया होगा, इस पर विश्वास करना भी कठिन है। लेकिन संजय भंसाली की कल्पना में बाजीराव शायद ऐसे ही थे। कुछ वैसा ही माहौल पदमावती को लेकर पैदा किया जा रहा है। किसी को किसी के चरित्र हनन का अधिकार नहीं है। लेकिन यहां फिल्म बिना देखे ही दावे के साथ कहा जा रहा है कि चित्तौड़ की रानी पद्मावती के चरित्र को गलत ढंग से पेश किया गया है। इस मामले में लोग कोर्ट भी गए। कोर्ट ने भी कहा कि रिलीज होने से पहले फिल्म पर क्या रोक लगाएं ? यानी वास्तव में संजय भंसाली, दीपिका पदुकोण और फिल्म से जुड़े अन्य लोगों के अलावा किसी को यह ठीक से पता ही नहीं है ‍िक वास्तव में फिल्म में दिखाया क्या गया है? उधर भंसाली ने विवाद और बढ़ाने दीपिका का ‘घूमर नृत्य’रिलीज कर डाला। इन सबके बीच देश का क्षत्रिय समाज आहत है। वह इसे स्वाभिान पर चोट मान रहा है। पूरे प्रकरण में सियासत की बाटियां भी धीमी आंच पर सिंक रही हैं और गुजरात चुनाव का धुआं भी कहीं उठ रहा है। इसमें भाजपा की भूमिका चिट भी मेरी और पट भी मेरी की है। एक तरफ योगी आदित्यनाथ इतिहास से छेड़छाड़ न करने की चेतावनी देते हैं दूसरी तरफ उमा भारती गलती का ठीकरा डायरेक्टर पर फोड़ती हैं। उधर फिल्म डायरेक्टर भी साफ- साफ यह नहीं बताते कि फिल्म में आखिर है क्या? वे आग को और भभकने देना चाह रहे हैं। जितना घी पड़ेगा आग उतनी ही भड़केगी। इस फिल्म को अभी सेंसर बोर्ड से मंजूरी नहीं मिली है। ‍फिल्म को 1 दिसंबर को रिलीज होना है। अगर फिल्म में वास्तव में पदमावती का चरित्र आपत्तिजनक ढंग से दिखाया गया है तो सेंसर बोर्ड ही कैंची चला देगा। अगर नहीं चली तो मानिए कि इस फिल्म को सरकार की अोर से हरी झंडी है। इसके बावजूद यह चेतावनी है कि 1 दिसंबर को ‘भारत बंद’ होगा। इसका कोई औचित्य समझ नहीं आता। एक फिल्म देश का राष्ट्रीय मुद्दा कैसे हो सकती है? और फिर अगर फिल्म इतनी ही आपत्तिजनक है तो उसे न देखने और निर्माता को घाटे में डुबोने का विकल्प तो हर नागरिक के पास है ही। यह समझना भी कठिन है कि एक फिल्म ( वो जैसी भी है) को इतिहास मानने का दुराग्रह क्यों है? यानी एक तरफ इतिहास को सुधारने की बात तो दूसरी तरफ कल्पित बातों को इतिहास मानकर लाठी घुमाने की जिद। इसे क्या कहें ? इसके अलावा किसी लक्षित व्यक्ति का सिर काटने, पीटने या फिर ठिकाने लगाने नकद इनाम घोषित करने का चलन भी खूब चल पड़ा है। यह ऐलान किसी पक्ष द्वारा किसी के खिलाफ भी हो सकता है। पद्मावती मामले में तो दो इनाम घोषित हुए हैं। पहला दीपिका पदुकोण की गर्दन काटने पर पांच करोड़ और दूसरा नाक काटने पर (राशि स्पष्ट नहीं है)। इसमें भी प्राथमिकता किसको है, यह भी साफ नहीं है। वैसे भी ऐसे मामलों में इनाम घोषित करने वाला खुद यह इनाम अपने नाम करने का साहस नहीं दिखाता। उसकी निगाह केवल मीडिया की सुर्खियों पर रहती है। सरकार अगर मानहानि की तरह ऐसे इनामो पर भी जमानत राशि की शर्त रख दे तो ऐसी बयानबाजी पर कुछ रोक लगे। और दीपिका के मामले में ऐसा दुस्साहस कौन करेगा, करेगा भी या नहीं, कहना मुश्किल है, लेकिन करोड़ों के प्रचार बजट से भी जो नहीं हो पाता, वह ऐसी धमकियों से जरूर होगा। संजय लीला भंसाली बतौर व्यापारी यह बात बखूबी समझते हैं।



दुनिया के भ्रष्टाचार मुक्त देशों में शीर्ष पर गिने जाने वाले न्यूजीलैंण्ड के एक लेखक ब्रायन ने भारत में व्यापक रूप से फैंलें भष्टाचार पर एक लेख लिखा है। ये लेख सोशल मीडि़या पर काफी वायरल हो रहा है। अनुवाद प्रस्तुत है।

MMNN:20 November 2017

न्यूजीलैंड से एक बेहद तल्ख आर्टिकिल।
भारतीय लोग होब्स विचारधारा वाले है (सिर्फ अनियंत्रित असभ्य स्वार्थ की संस्कृति वाले) भारत मे भ्रष्टाचार का एक कल्चरल पहलू है। भारतीय भ्रष्टाचार मे बिलकुल असहज नही होते, भ्रष्टाचार यहाँ बेहद व्यापक है। भारतीय भ्रष्ट व्यक्ति का विरोध करने के बजाय उसे सहन करते है। कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नही होती
'THE BEST FERTILISER'
ये जानने के लिये कि भारतीय इतने भ्रष्ट क्यो होते हैं उनके जीवनपद्धति और परम्पराये देखिये। भारत मे धर्म लेनेदेन वाले व्यवसाय जैसा है। भारतीय लोग भगवान को भी पैसा देते हैं इस उम्मीद मे कि वो बदले मे दूसरे के तुलना मे इन्हे वरीयता देकर फल देंगे। ये तर्क इस बात को दिमाग मे बिठाते हैं कि अयोग्य लोग को इच्छित चीज पाने के लिये कुछ देना पडता है। मंदिर चहारदीवारी के बाहर हम इसी लेनदेन को भ्रष्टाचार कहते हैं। धनी भारतीय कैश के बजाय स्वर्ण और अन्य आभूषण आदि देता है। वो अपने गिफ्ट गरीब को नही देता, भगवान को देता है। वो सोचता है कि किसी जरूरतमंद को देने से धन बरबाद होता है। जून 2009 मे द हिंदू ने कर्नाटक मंत्री जी जनार्दन रेड्डी द्वारा स्वर्ण और हीरो के 45 करोड मूल्य के आभूषण तिरुपति को चढाने की खबर छापी थी। भारत के मंदिर इतना ज्यादा धन प्राप्त कर लेते हैं कि वो ये भी नही जानते कि इसका करे क्या। अरबो की सम्पत्ति मंदिरो मे व्यर्थ पडी है।
जब यूरोपियन इंडिया आये तो उन्होने यहाँ स्कूल बनवाये। जब भारतीय यूरोप और अमेरिका जाते हैं तो वो वहाँ मंदिर बनाते हैं। भारतीयो को लगता है कि अगर भगवान कुछ देने के लिये धन चाहते हैं तो फिर वही काम करने मे कुछ कुछ गलत नही है। इसीलिये भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्ट बन जाते हैं।
भारतीय कल्चर इसीलिये इस तरह के व्यवहार को आसानी से आत्मसात कर लेती है, क्योंकि 1 नैतिक तौर पर इसमे कोई नैतिक दाग नही आता। एक अति भ्रष्ट नेता जयललिता दुबारा सत्ता मे आ जाती है, जो आप पश्चिमी देशो मे सोच भी नही सकते । 2 भारतीयो की भ्रष्टाचार के प्रति संशयात्मक स्थिति इतिहास मे स्पष्ट है। भारतीय इतिहास बताता है कि कई शहर और राजधानियो को रक्षको को गेट खोलने के लिये और कमांडरो को सरेंडर करने के लिये घूस देकर जीता गया। ये सिर्फ भारत मे है भारतीयो के भ्रष्ट चरित्र का परिणाम है कि भारतीय उपमहाद्वीप मे बेहद सीमित युद्ध हुये। ये चकित करने वाला है कि भारतीयो ने प्राचीन यूनान और माडर्न यूरोप की तुलना मे कितने कम युद्ध लडे। नादिरशाह का तुर्को से युद्ध तो बेहद तीव्र और अंतिम सांस तक लडा गया था। भारत मे तो युद्ध की जरूरत ही नही थी, घूस देना ही ही सेना को रास्ते से हटाने के लिये काफी था। कोई भी आक्रमणकारी जो पैसे खर्च करना चाहे भारतीय राजा को, चाहे उसके सेना मे लाखो सैनिक हो, हटा सकता था। प्लासी के युद्ध मे भी भारतीय सैनिको ने मुश्किल से कोई मुकाबला किया। क्लाइव ने मीर जाफर को पैसे दिये और पूरी बंगाल सेना 3000 मे सिमट गई। भारतीय किलो को जीतने मे हमेशा पैसो के लेनदेन का प्रयोग हुआ। गोलकुंडा का किला 1687 मे पीछे का गुप्त द्वार खुलवाकर जीता गया। मुगलो ने मराठो और राजपूतो को मूलतः रिश्वत से जीता श्रीनगर के राजा ने दारा के पुत्र सुलेमान को औरंगजेब को पैसे के बदले सौंप दिया। ऐसे कई केसेज हैं जहाँ भारतीयो ने सिर्फ रिश्वत के लिये बडे पैमाने पर गद्दारी की।
सवाल है कि भारतीयो मे सौदेबाजी का ऐसा कल्चर क्यो है जबकि जहाँ तमाम सभ्य देशो मे ये सौदेबाजी का कल्चर नही है 3- भारतीय इस सिद्धांत मे विश्वास नही करते कि यदि वो सब नैतिक रूप से व्यवहार करेंगे तो सभी तरक्की करेंगे क्योंकि उनका “विश्वास/धर्म” ये शिक्षा नही देता। उनका कास्ट सिस्टम उन्हे बांटता है। वो ये हरगिज नही मानते कि हर इंसान समान है। इसकी वजह से वो आपस मे बंटे और दूसरे धर्मो मे भी गये। कई हिंदुओ ने अपना अलग धर्म चलाया जैसे सिख, जैन बुद्ध, और कई लोग इसाई और इस्लाम अपनाये। परिणामतः भारतीय एक दूसरे पर विश्वास नही करते। भारत मे कोई भारतीय नही है, वो हिंदू ईसाई मुस्लिम आदि हैं। भारतीय भूल चुके हैं कि 1400 साल पहले वो एक ही धर्म के थे। इस बंटवारे ने एक बीमार कल्चर को जन्म दिया। ये असमानता एक भ्रष्ट समाज मे परिणित हुई, जिसमे हर भारतीय दूसरे भारतीय के विरुद्ध है, सिवाय भगवान के जो उनके विश्वास मे खुद रिश्वतखोर है।